|| श्री हरि: ||
9 - श्रद्धा की जय
आज की बात नहीं है; किंतु है इसी युगकी क्या हो गया कि इस बात को कुछ शताब्दियाँ बीत गयी। कुलान्तक्षेत्र (कुलू प्रदेश) वही है, व्यास ओर पार्वती की कल-कल-निदनादिनी धाराएँ वही हैं और मणिकर्ण का अर्धनारीश्वर क्षेत्र तो कहीं आता-जाता नहीं है।
कुलू के नरेश का शरीर युवावस्था में ही गलित कुष्ठ से विकृत हो गया था। पर्वतीय एवं दूरस्थ प्रदेशों के चिकित्सक व्याधि से पराजित होकर विफल-मनोरथ लौट चुके थे। क्वाथा-स्नान , चूर्ण-भस्म, रस-रसायन कुछ भी तो कर सका होता।
नरेश न उच्छृंखल थे, न भोगपरायण। उनके पूर्व पुरुषों ने कुलान्त क्षेत्र के दिव्य त्रिकोण (व्यास नदी के उद्गम, पार्वती नदी के उद्गम ओर दोनों के संगम स्थल की मध्यभूभि) को भगवान उमा-महेश्वर की, विहार-भूमि मानकर उसे अपने निवास से अपवित्र करना उचित नहीं समझा। मनुष्य रहेगा तो उसके साथ उसके प्रमाद त्रुटियाँ भी रहेंगी ही। अत: उन्होंने व्यास के दक्षिणतट पर अपनी राजधानी बनायी, जो आज कुलू कही जाती है। यों इस त्रिकोण में उनके वंशधरों ने पीछे एक निवास बना लिया था नगर में और वही आज पुरानी राजधानी के नाम से जाना जाता है। #Books