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कभी पैहम निकलती है, कभी कम कम निकलती है, कभी बन चा

कभी पैहम निकलती है, कभी कम कम निकलती है,
कभी बन चाँद पूनम का तो कभी मद्धम निकलती है!

सुरों को साथ लेकर छेड़ती सरगम बन निकलती है,
पहन कर पाज़ेब तू करती हुई छम-छम निकलती है!

 एक मामूली झटके  में हुआ हूँ मैं ज़ब्ह तेरी हाथों से,
किसी का दम हलाली में फँसे थम-थम निकलती है!

ज़बाँ अल्फ़ाज़ से ख़ाली, हलक़ आवाज़ से ख़ाली,
मगर दो आँख से पानी झमा-झम झम निकलती है!

मेरी इस ग़म की शनासी से, उदासी बद-हवासी से,
न तेरी लट संवरती है    ना कोई ख़म निकलती है!

उठा कर हाथ अंगड़ाई तू,  जब शोला-बदन तोड़े,
नहीं होता बयाँ,  जो हुस्न का आलम निकलती है!

"विकास  ठाकुर" का दिल "आरोही" के इल्म पे फ़िदा,
आंखें बिछाती है जमाना, जब मेरी जानम निकलती है!

 Dedicating a #testimonial to Arohi Tripathi
You are the truly deserve my ghazals each words.. 
Mahadev bless uhh to fullfill your each dream whenever you desire must be found..

Always be cute and lovely with everyone and enjoy life happy happy with love care respect around of uhh 💞💓


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कभी पैहम निकलती है, कभी कम कम निकलती है,
कभी बन चाँद पूनम का तो कभी मद्धम निकलती है!

सुरों को साथ लेकर छेड़ती सरगम बन निकलती है,
पहन कर पाज़ेब तू करती हुई छम-छम निकलती है!

 एक मामूली झटके  में हुआ हूँ मैं ज़ब्ह तेरी हाथों से,
किसी का दम हलाली में फँसे थम-थम निकलती है!

ज़बाँ अल्फ़ाज़ से ख़ाली, हलक़ आवाज़ से ख़ाली,
मगर दो आँख से पानी झमा-झम झम निकलती है!

मेरी इस ग़म की शनासी से, उदासी बद-हवासी से,
न तेरी लट संवरती है    ना कोई ख़म निकलती है!

उठा कर हाथ अंगड़ाई तू,  जब शोला-बदन तोड़े,
नहीं होता बयाँ,  जो हुस्न का आलम निकलती है!

"विकास  ठाकुर" का दिल "आरोही" के इल्म पे फ़िदा,
आंखें बिछाती है जमाना, जब मेरी जानम निकलती है!

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You are the truly deserve my ghazals each words.. 
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vikasthakur9211

vikas thakur

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