भीड़ बाद गई है यादों की सांसों से कह दो साफ कर दो मेरा नहीं दोष है दिमाग का ऐसी गलतियों को माफ कर दो जहां पसरा है आलम गरीबी का ऐसे मकानों को सराफ कर दो जिनमें पैर पूरे फैलते नहीं ऐसे कपड़ों को लिहाफ कर दो दस्तरखान नीचे ही दबा रहता है बना के दस्तार सियासत के खिलाफ कर दो Dr KR Prbodh #kahani yaado ki