"स्तुती" बेमतलब की बकबक थीं बिना कोई जवाब, सवाल भी वही थीं मेरी हर मुसीबत का हल थी ओ हर जख्म का मेरे, मरहम वहीं हुआ करती थीं रहें मेरी उसीसे और मंज़िल उसिपे खत्म थीं हर सुबह मेरी वहीं, रात उसीसे हुआ करती थीं स्तुती 😘