बसंत हवा का झोका है वो तितली सी नादान वो बहती नदी की धार सी चंचल रूबी जिसका नाम हो।। शहद टपकते शब्द से उनके और आँखो में अंगार वो जिस आँखो से प्यार टपकता उन आँखो पे सोलह श्रृंगार हो।। अच्छाई की मूरत देखी ना देखी तो उनको देखो खुद को संत समझने वाले पहले जाकर उन्हें निरेखों।। मैनें जब से दोस्त बनाया उनको हरदम हँसता पाया देख हँसी मैं उस चेहरे की खुद के गम को दिया भूलाया।। जहाँ रहें बस मस्त रहें अपनों में ही व्यस्त रहें हर दिन ऐसे जियो आप की हर दिन ही जबरदस्त रहें ©Sandeep Sagar #sagarkidiaryse #likefollowandshare #Smile