गुज़र गया है अब वो दौर ऐ रहनुमाओ जब नाहक लहूं परवानों का बहता था परवाने भी सुन कर ही तड़प जाते थे जब कोई शम्मा जलाने को कहता था अब्दुल्लाह नसीम #ऊर्दू_शायरी