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#वैजयंती_का_फूल ********************** तपती दुपह

#वैजयंती_का_फूल
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तपती  दुपहरी, हवा वेगवती
और  ज़मीन  हैं  पाथर  शूल
फ़िर  भी  देखों लहलहा रहीं
खिली  खिली  वैजयंती फूल

उसके साथ नही कोई तरुवर 
जमी   उष्ण,  हो  गईं  मरुवर 
फ़िज़ा तपेड़ी पवन के सँग में
आसमान   में   रहीं   है  झूल
फ़िर  भी  देखों  लहलहा रहीं
खिली  खिली  वैजयंती  फूल

तपती  धरती, तपता अंबर है
सूरज  का  भी  आँख गरम हैं
लू  झुलसाए  बदन मनुज का
पकड़  रही  हैं  पीड़ा की तूल
फ़िर  भी  देखों  लहलहा रहीं
खिली  खिली  वैजयंती  फूल 

उसको  कोई गीला न शिकवा
दुःख उसको लगता हैं मितवा
खारा  जल  शीतल विहीन में
वह  रंग  बिखेरता  पिला गुल
देखों   कैसे  लहलहा  रहीं  हैं
खिली  खिली  वैजयंती  फूल

झंझावतों   से  लड़ना  सिखों
विपदाओं  से  भिड़ना  सिखों
सुख  दुःख  में  समवत रहना
यहीं  जीवन  का  सबके  मूल
विषम समय में लहलहा  कर
यहीं बता रही  वैजयंती  फूल ।।

©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
     देवरिया उत्तर प्रदेश

©बिमल तिवारी “आत्मबोध” #वैजयंती

#Journey
#वैजयंती_का_फूल
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तपती  दुपहरी, हवा वेगवती
और  ज़मीन  हैं  पाथर  शूल
फ़िर  भी  देखों लहलहा रहीं
खिली  खिली  वैजयंती फूल

उसके साथ नही कोई तरुवर 
जमी   उष्ण,  हो  गईं  मरुवर 
फ़िज़ा तपेड़ी पवन के सँग में
आसमान   में   रहीं   है  झूल
फ़िर  भी  देखों  लहलहा रहीं
खिली  खिली  वैजयंती  फूल

तपती  धरती, तपता अंबर है
सूरज  का  भी  आँख गरम हैं
लू  झुलसाए  बदन मनुज का
पकड़  रही  हैं  पीड़ा की तूल
फ़िर  भी  देखों  लहलहा रहीं
खिली  खिली  वैजयंती  फूल 

उसको  कोई गीला न शिकवा
दुःख उसको लगता हैं मितवा
खारा  जल  शीतल विहीन में
वह  रंग  बिखेरता  पिला गुल
देखों   कैसे  लहलहा  रहीं  हैं
खिली  खिली  वैजयंती  फूल

झंझावतों   से  लड़ना  सिखों
विपदाओं  से  भिड़ना  सिखों
सुख  दुःख  में  समवत रहना
यहीं  जीवन  का  सबके  मूल
विषम समय में लहलहा  कर
यहीं बता रही  वैजयंती  फूल ।।

©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
     देवरिया उत्तर प्रदेश

©बिमल तिवारी “आत्मबोध” #वैजयंती

#Journey