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हम उनसे मिले थे ज़िन्दगी के राह में, करीब आये थे दर

हम उनसे मिले थे ज़िन्दगी के राह में,
करीब आये थे दर्द बाँटने की चाह में।
फिर बुलबुले से फुट गए, टूट गए, छूट गए,
लौट आए टूटे वीरान खंडहरों के पनाह में।

शब्दों से हृदय में अनुभूतियों की उत्पत्ति हुई थी,
उन्हें अपना मान बैठे थे, शायद भ्रम या भूल थी।
भ्रम था टूट गया, भूल की सज़ा भी मिली,
वज़ह, हमारे दरमियाँ जो गलतफहमियों की शूल थी।।

अस्तित्व मेरा उनके चरणों का धूल सा,
वो पवित्र, शक्तिशाली, तेज उनका शिव के त्रिशूल सा।
मेरा उनके समक्ष होना तो दूर की बात,
वो वायु हैं मैं उनमें उड़ता फिर मिट्टी में मिलता धूल सा।।

वो सुर्य सी तेज़, मैं समीप जाने की चेष्टा में ख़ुदको जला बैठा,
शब्दों के स्नेह-प्रेम में उनको अपना मानकर वास्तविकता को भुला बैठा।
स्वप्न और वास्तविकता के युद्ध में विजयी वास्तव हुआ,
फिर रिश्तों की चिता सजायी हमने और भावनाओं को जला बैठा।।

©Ajayy Kumar Mahato हम उनसे मिले थे ज़िन्दगी के राह में,
करीब आये थे दर्द बाँटने की चाह में।
फिर बुलबुले से फुट गए, टूट गए, छूट गए,
लौट आए टूटे वीरान खंडहरों के पनाह में।

शब्दों से हृदय में अनुभूतियों की उत्पत्ति हुई थी,
उन्हें अपना मान बैठे थे, शायद भ्रम या भूल थी।
भ्रम था टूट गया, भूल की सज़ा भी मिली,
हम उनसे मिले थे ज़िन्दगी के राह में,
करीब आये थे दर्द बाँटने की चाह में।
फिर बुलबुले से फुट गए, टूट गए, छूट गए,
लौट आए टूटे वीरान खंडहरों के पनाह में।

शब्दों से हृदय में अनुभूतियों की उत्पत्ति हुई थी,
उन्हें अपना मान बैठे थे, शायद भ्रम या भूल थी।
भ्रम था टूट गया, भूल की सज़ा भी मिली,
वज़ह, हमारे दरमियाँ जो गलतफहमियों की शूल थी।।

अस्तित्व मेरा उनके चरणों का धूल सा,
वो पवित्र, शक्तिशाली, तेज उनका शिव के त्रिशूल सा।
मेरा उनके समक्ष होना तो दूर की बात,
वो वायु हैं मैं उनमें उड़ता फिर मिट्टी में मिलता धूल सा।।

वो सुर्य सी तेज़, मैं समीप जाने की चेष्टा में ख़ुदको जला बैठा,
शब्दों के स्नेह-प्रेम में उनको अपना मानकर वास्तविकता को भुला बैठा।
स्वप्न और वास्तविकता के युद्ध में विजयी वास्तव हुआ,
फिर रिश्तों की चिता सजायी हमने और भावनाओं को जला बैठा।।

©Ajayy Kumar Mahato हम उनसे मिले थे ज़िन्दगी के राह में,
करीब आये थे दर्द बाँटने की चाह में।
फिर बुलबुले से फुट गए, टूट गए, छूट गए,
लौट आए टूटे वीरान खंडहरों के पनाह में।

शब्दों से हृदय में अनुभूतियों की उत्पत्ति हुई थी,
उन्हें अपना मान बैठे थे, शायद भ्रम या भूल थी।
भ्रम था टूट गया, भूल की सज़ा भी मिली,