चरणों की धूल "माँ" तेरे चरणों की धूल को मष्तक पर लगाता हूं तेरे पांवों के निशान पर शीश झुकाता हूं माँ...तेरा वात्सल्य आसमाँ छूना सिखाता है तेरा कर्जदार हूं...... तेरी चुनड़ की छांव में रहकर ये कर्ज चुकाता हूं न् जाने कितनी खाँगड राहो को पार करके मुझे समतल रास्ता सौपा है अब मैं उन राहो पर रोज प्रेम के फूल सजाता हूं तेरे धैर्य का जीवंत साक्षी हूं मैं, तेरी विन्रमता का कायल हूं माँ, अब मैं आवेश में इस अमृत का घूँट पीता-पिलाता हूं तेरे चरणों की धूल को मष्तक पर लगाता हूं तेरे पांवों के निशान पर शीश झुकाता हूं !! माँ