ज़ूल्म बे-हद के नज़र आते हैं आसार हमे.. दुश्मन-ए-जां नज़र आए पसे दिवार हमे.. इससे पहले के बिखर जाए किताबे हस्ती.. ख्वाब-ए-ग़फ्लत में जो हैं करना है बेदार हमे.. ज़ूल्म सेहना भी है ज़ालिम की हिमायत करना.. अब उठानी है दिफा के लिए तलवार हमे.. हमने सींचा है गुलिस्तां को लहू से अपने.. जो हैं गद्दार-ए-वतन वो कहें गद्दार हमे.. हम तो हक़ बात ही अब्बास सदा करते हैं.. तल्ख करनी नहीं आती कोई गुफतार हमे.. अब्बास नक़वी औरंगाबादी