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गुम हो जाता है। हो सकता है लगे ज़रा सी, पर हाल पे ह

गुम हो जाता है।
हो सकता है लगे ज़रा सी, पर हाल पे हमारे, गौर फ़रमाने की बात है,
सवाल ताउम्र साथ का पूछने को हैं तैयार, पर मुलाकातों में तुमसे हमें बड़ी मुश्किलात है,
कुछ अलग ज़रा सामने बैठें, या बगल में बैठ के करें उन नज़दीकियों का भरोसा,
जहाँ ज़ालिम है तेरी महक, और ना वफादार, ज़ुल्फों को लहराता वो हवा का झोंका,
अगर सामने जो बैठने का जज़्बा दिखाएँ, तो फरमाइशें दिमाग की करें बुरा हाल,
के झपकती पलकों को देखें, या आज़माएं आज तेरी मचलती नज़रों का जाल,
तेरी हसीन बातों से दिल लगायें, या इन गुलाब़ी लबों की लरज़ पे कुर्बां हों,
गुज़रते वक्त के साथ दौड़ती धड़कनें थमें तो सही, तो दिल के जज़्बात ज़ुबाँ पे आके फिर जवाँ हों,
फिर अचानक, तेरे जाने के पहले ही, जाने क्यूँ तेरे जाने के ख़्याल का गम फिर आ जाता है,
और ख़्वाबों के हकीकत बने बिना ही, ज़ुबाँ पे आने वाला वो सवाल, फिर वापस गुम हो जाता है।

- आशीष कंचन
 #गुमहोजाताहै #proposal #yqsayari #yqpoetry #collab #yqdidi #forthquote
गुम हो जाता है।
हो सकता है लगे ज़रा सी, पर हाल पे हमारे, गौर फ़रमाने की बात है,
सवाल ताउम्र साथ का पूछने को हैं तैयार, पर मुलाकातों में तुमसे हमें बड़ी मुश्किलात है,
कुछ अलग ज़रा सामने बैठें, या बगल में बैठ के करें उन नज़दीकियों का भरोसा,
जहाँ ज़ालिम है तेरी महक, और ना वफादार, ज़ुल्फों को लहराता वो हवा का झोंका,
अगर सामने जो बैठने का जज़्बा दिखाएँ, तो फरमाइशें दिमाग की करें बुरा हाल,
के झपकती पलकों को देखें, या आज़माएं आज तेरी मचलती नज़रों का जाल,
तेरी हसीन बातों से दिल लगायें, या इन गुलाब़ी लबों की लरज़ पे कुर्बां हों,
गुज़रते वक्त के साथ दौड़ती धड़कनें थमें तो सही, तो दिल के जज़्बात ज़ुबाँ पे आके फिर जवाँ हों,
फिर अचानक, तेरे जाने के पहले ही, जाने क्यूँ तेरे जाने के ख़्याल का गम फिर आ जाता है,
और ख़्वाबों के हकीकत बने बिना ही, ज़ुबाँ पे आने वाला वो सवाल, फिर वापस गुम हो जाता है।

- आशीष कंचन
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