'मौजूदा मसाइल' मौजूदा मसाइल पे, लिखने की हिदायत थी हमने बग़ैर देर किए, तुझ पे ग़ज़ल कही। काफ़ूर हो चले जब, सब सब्र के परिन्दे तेरी तरफ़ से हमने, ख़ुद पे ग़ज़ल कही। मौसम के बदलने के, वाकिफ़ थे मिजाज़ों से मात उनको देते तेरे, रुख़ पे ग़ज़ल कही। संगों पे पड़ी धारी, हिम्मत पे रही भारी बेकार हमने अब तक, बुत पे ग़ज़ल कही। यारों ही की महफ़िल थी, यारी ही के किस्से थे ग़म के अज़ीज़ हम थे, उस पे ग़ज़ल कही। सावन के महीने में, सब गा रहे थे झूले हमने भी पतझड़ों की, रुत पे ग़ज़ल कही। दुनिया के शोरगुल पे, कहने को कुछ नहीं था मजबूर थे आदत से, चुप पे ग़ज़ल कही। ग़ज़लों में ढूंढते हैं, सब सुख जहान के दीगर ये बात है के, दुख पे ग़ज़ल कही। #NaveenMahajan मौजूदा मसाइल #shadesoflife