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पसंद और प्यार दो अलग शब्द है, भले ही दोनों की जड़

पसंद और प्यार दो अलग शब्द है, भले ही दोनों की जड़ यकीन पर टिकी हो लेकिन दोनों के मायने और लहज़े बिलकुल जुदा है लेकिन हमनें उनको एक बना दिया है या समझ लिया है.... 
जैसे कि जब बात पसंद कि हो तो हमें  सारी कायनात पसंद होती हैं ... लेकिन आप भी जानते हैं सारी कायनात से आप प्यार नहीं कर सकते।
        " प्यार में सांझेपन की बात खटक पैदा करती हैं।"
लेकिन
       " पसंद में हम  हर चीज़ मुस्कराकर सांझा करते हैं , हमें उसके खो जाने     या छिन जाने का खौफ नहीं सताता हैं...." 
जब कभी आपके  आंगन बारिश होती हैं तो आप उसको क़ैद नही करते की वो आपको पसंद है  बल्कि आप उसके साथ वक्त बिताकर खुश होते हैं, जबकि आप बेशक जानते हैं कि अनगिनत लोग उसको पसंद करते हैं लेकिन आपको कोई कोई फर्क नहीं पड़ता ....
लेकिन वही कोई आपसे आपके घर की छोटी सी कील भी मांगे तो आपको उसके खो जाने का एहसास परेशान कर देता है। क्योंकि आपको आपके घर से प्यार है ....  
वैसे ही हम हज़ारों लोगों से मिलते हैं , उनमें बहुत लोग हमें पसंद होते हैं लेकिन हमें उनसे प्यार भी हो बिलकुल भी ज़रूरी नहीं, क्योंकि पसंद करने और प्यार करने में फ़र्क है।

©Ruksar Bano
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Ruksar Bano

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Growing Creator

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