Unsplash अपने आंसू , गम , जज़्बात लिखता हूँ, पसंद नहीं फिर भी वो बात लिखता हूँ, टूट जाता हैं ख्वाब मेरा जब भी फिर से नया एक ख्वाब लिखता हूँ, मन में जो उठती हैं अनकही बातें वही सारे अल्फाज़ लिखता हूँ, चोट खाकर ही पत्थर तराशें गए आज फिर से वही मिशाल लिखता हूँ, जो लोग अच्छाई के नकाब में होते हैं, उनकी असलियत कई बार लिखता हूँ, अक्सर मेरी रातें यूं ही गुजर जाती हैं, जब कभी अपना अलग मिज़ाज़ लिखता हूँ... ©Rishi Ranjan #Book poetry on love love poetry for her deep poetry in urdu love poetry in english metaphysical poetry