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जिन लफ़्ज़ों में तेरी तारीफ ना हो उन लफ़्ज़ों को भ

जिन लफ़्ज़ों में तेरी तारीफ ना हो
उन लफ़्ज़ों को भला मैं सुनूँ कैसे
जिन पन्नों पर न लिखा हो नाम तेरा
उन पन्नों को मैं पढ़ूं कैसे

जिन शब्दों का अर्थ तुझसे न जुड़े
उन अर्थ को मैं ग्रहण करूं कैसे ?

अभी-अभी उगा था सूर्या इश्क का
अभी अभी उज्ज्वल लालिमा बिखरी थी
तुझे देखकर ही तो मेरा चेहरा खिल| था 
और सूरत मेरी निखर आई थी
अभी-अभी चढ़ा था नाम जुबान पर
इस इश्करूपी सूर्य को अभी अस्ताचल होने दूं मैं कैसे

अभी अभी तो उसने शपथ लिया था मेरा
साथ निभाऊंगा जीवन भर
चांद नोटों की चमक में
वह शब्द! वह अल्फ़ाज़! वह पन्ना!
वह अर्थ! सब कुछ! सब कुछ
वो सारा सपने एक पल में तिनके की तरह बिखर गया
एक अर्थ बिक गया Doosre वित्त अर्थ धन के आगे कैसे?

©सुशांत राजभर
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