तुम्हारी आंखें हजारों के बीच मुझे ढूंढती थी। मुझसे बात करते ही तुम्हारा दुख और दर्द दोनों छूमंतर हो जाता था। मुझसे बात करने के लिए कितना रिस्क उठाया करती थी। मैं कैसा हूं क्या कर रहा हूं यह जाने बगैर तुम्हें चैन नहीं मिलता था। तुम मुझे खुद के करीब महसूस करती थी। अब मैं घुटने लगा हूं यह सारे सवाल मुझे खाए जा रही है? जिस तरह में पहले खुद से लड़ाई करता था डर लगता है कहीं मैं खुद का दुश्मन ना बन जाऊं। gazab