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आज में आज में राख के उस ढेर पर जा बैठी जहाँ से पै

आज में

आज में राख के उस ढेर पर जा बैठी
जहाँ से पैरों को धसते बचाना नामुमकिन था
और फिर से एक बार 
फस गई वही जहाँ पुरानी कुछ यादे
और जख्मो को दफनाया था
और फिर अब मोम बन पिघल रही हूँ
बरसो से सख्तियत जमा की थी
बड़ी मुद्दतो से
अब आज फिर पिघलने लगी है
और उस ढेर पर बैठी में
फिर उन दफ्न ख्यालो और जख्मो 
संग तपने लगी हूँ।
बस एक ख्याल है मन में 
इसके पिघल जाने पर जल्द सीमेंट लू इसे
और दफना दू कही
जहाँ कोई इसे छू न पाए
दिल के किसी एकांत कोने में।
कविता जयेश पनोत
Written on 24 may2020
At10:30pm आज मै
आज में

आज में राख के उस ढेर पर जा बैठी
जहाँ से पैरों को धसते बचाना नामुमकिन था
और फिर से एक बार 
फस गई वही जहाँ पुरानी कुछ यादे
और जख्मो को दफनाया था
और फिर अब मोम बन पिघल रही हूँ
बरसो से सख्तियत जमा की थी
बड़ी मुद्दतो से
अब आज फिर पिघलने लगी है
और उस ढेर पर बैठी में
फिर उन दफ्न ख्यालो और जख्मो 
संग तपने लगी हूँ।
बस एक ख्याल है मन में 
इसके पिघल जाने पर जल्द सीमेंट लू इसे
और दफना दू कही
जहाँ कोई इसे छू न पाए
दिल के किसी एकांत कोने में।
कविता जयेश पनोत
Written on 24 may2020
At10:30pm आज मै