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दूर ही अच्छे है, भला ये दर्द बड़ा बेदर्द है। काश व

दूर ही अच्छे है, भला ये दर्द बड़ा बेदर्द है।
काश वो पल अच्छे है, जहा हम अकेले है।
जालिम तो हम खुद बन गए दिल ए जख्म,
कोई समझ सके या ना समझे दिल ए दर्द में,
आज फिर कलम उठा ली है , अपने बीते हुए कल पर,
फिर तन्हाई में अकेले रहने की आदत डाली है।
वफा की मेंहदी चढ़ी थी आसमान तक,
रंग जब उतारा तो,
खाली आसमान नजर आया।
होते है मोहब्बत के अल्फाज,
सिर्फ सुकून के लिए,
खामोशी में कही ,
खोए हुए से

©ADV.काव्या मझधार( DK) महाकाल उपासक
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