थमा दी डोर जिम्मेदारी की बचपना भूल बैठा हूँ , किये वादे अभी तक जो उन्हें कर - पूर बैठा हूँ । अधिक हो दर्द गर तेरे , तो तू यह जान ले अब फिर । तेरी मिट्टी में भी अब तक मैं हिस्से दार बैठा हूँ । थमा दी डोर ज़िम्मेदारी की बचपना भूल बैठा हूँ .... बहन शादी किये और भ्रात संग भी दिन गुजारे हैं । अवधि पूरी किये अब तक, जो हम यह पद संभाले हैं । बहे जब अश्रु धारा सी , तभी जानोगे तुम सब क्या । किये सब फर्ज पूरे हैं भला अहसान इसमें क्या । ...Mr.@gnihotri..... कविता nka Gupta Priya