क्या वो फिर आयेगी! वो... दूर शहर की लड़की जो चली आती थी बनारस तक खींची खींची सी। न जाने क्यूं अक्सर ही जो दिख जाती थी। लंका के चौराहे पर या फिर कुछेक दुकानो पर। क्या इस बार भी वो ट्रेन का इंतजार करेगी! घंटो बैठकर चंद भीड़ में... बार बार उठकर दूर तलक जाती पटरियों को देखेगी! वही दूर शहर की लड़की जो बिना वजह ही अस्सी की सीढ़ियों पर बैठी रहती थी। क्या फिर से हम टकारायेंगे। सीढ़ियों से चढ़ते उतरते... क्या वो फिर से नजरें झुकाये चुपचाप आगे बढ़ जायेगी पहले की तरह या कि कुछ बोलेगी; एक अदद माफी ही सही। नाराजगी जो अब तक दबी है हमारे भीतर उसे दूर करने को थोड़ा तो मुस्कुरायेगी न? फिर से उसकी जुल्फें अल्हड़ हवा से परेशां तो होगी? चेहरे पर गिरती लटों को क्या वो फिर से कान के पीछे ले जायेगी! जिससे माथे पर लगी छोटी से काली बिंदी दिखती थी। क्या फिर से लंका से वीटी की दूरी तय करते वो दस बातें यूंही आँखो से कह जायेगी! वो लड़की बीएचयू की सड़को पर चलती थी, फिर से कदम बढ़ायेगी? वो दूर शहर की लड़की क्या फिर से आवाज देगी ठीक हमारे पीछे से। एक झूठ ही सही पर कुछ तो लौटायेगी? जानते हैं बे, ये इश्क नहीं... बस एक लम्हा है जो सामने से गुजर जाता है और हम बस जी लेते हैं उसको जी भर के उस एक लम्हे में ही... लेकिन सोचते हैं... क्या वो फिर से आयेगी..!❤️😊