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आसमां सा मुझपे जो छाया हुआ है, वो भी ख़ाख-ए-इश्क़ मे

आसमां सा मुझपे जो छाया हुआ है,
वो भी ख़ाख-ए-इश्क़ में ज़ाया हुआ है ।

मैं ही फ़कत इश्क़ में टूटा नहीं हूँ,
ज़र्रा-ज़र्रा वो भी तो बिखरा हुआ है

मैं भी क्यों रोना करूँ बर्बादियों का,
वो भी तो मेरी तरह रुसवा हुआ है ।

मेरी तरह मंज़िलों से बेखबर है,
राह-ए-वफ़ा वो भी तो खोया हुआ है ।

मैं अगर बदमस्त हूँ उसकी तलब में,
वो भी मुझको मुफ़लिसी में ढूंढता है ।

कैसे मैं उस से करूँ कोई शिकायत,
मेरा मेहरम हू-ब-हू मेरी तरह है ।

- कनव Mehram
आसमां सा मुझपे जो छाया हुआ है,
वो भी ख़ाख-ए-इश्क़ में ज़ाया हुआ है ।

मैं ही फ़कत इश्क़ में टूटा नहीं हूँ,
ज़र्रा-ज़र्रा वो भी तो बिखरा हुआ है

मैं भी क्यों रोना करूँ बर्बादियों का,
वो भी तो मेरी तरह रुसवा हुआ है ।

मेरी तरह मंज़िलों से बेखबर है,
राह-ए-वफ़ा वो भी तो खोया हुआ है ।

मैं अगर बदमस्त हूँ उसकी तलब में,
वो भी मुझको मुफ़लिसी में ढूंढता है ।

कैसे मैं उस से करूँ कोई शिकायत,
मेरा मेहरम हू-ब-हू मेरी तरह है ।

- कनव Mehram
kanavkumar1506

Kanav Kumar

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