मैंने देखा तुम्हें कराहती खटिया पर चरमराते उन अंतिम दिनों में--- देखी मैंने शिथिल छटपटाहट मैं अट्टहास करती मृत्यु सांसों के बोझ से दबता जीवन --- मैंने देखा तुम्हें संघर्षरत! एकाकी! परबस! --- देखा तुम्हारी सेनाओं को जिन्हें तुमने तराशा था इसी क्षण के लिए तुमसे विमुख! --- जाते हुए भी देखा तुम्हें एक अज्ञात गन्तव्य को क्षार- क्षार, अस्थि- अस्थि को अकेले !--- फिर तुम्हें किसी ने नहीं देखा किन्तु मैं आज भी देखता हूँ तुम्हारी छवि अपने अज्ञात भविष्य के भयावह सपनों में!! के के जोशी उन अंतिम दिनों में #भयावह सपने