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पिता कुछ यादें बचपन की.... जब मैं छोटी थी वे जब

पिता  कुछ यादें बचपन की....
 जब मैं छोटी थी
 वे जब भी कुछ लाते थे
 चाहे वह चॉकलेट हो या मिठाई या कुछ और
 चुपके से मुझे बुलाते थे
  और सबको देने से पहले ही  एक मुझे थमा देते थे 
 कहते थे इसे छुपा देना और अकेले में खाना
 फिर बाकी बचा सब में बांट देते थे 
जिसमें मेरा हिस्सा भी होता था
 यूं तो वो  सच्चे और नेक दिल है
 पर मेरी खुशी के लिए
 इतनी गुस्ताखी कर लेते थे
 और अपना हिस्सा भी मुझे ही दे देते थे
 इससे मुझे इतनी खुशी मिलती थी कि 
मुझसे छुपाए नहीं छुपाई जाती थी
 और अंत में जब सब अपने हिस्से का खा चुके होते थे
 मैं अपनी छुपाई हुई चीज सब में  बांट कर खाती थी
 सबके मन में एक ही सवाल होता था
  सब तो खत्म हो गया था फिर यह कहां से आया
 सब पापा की और  सवाल भरी नजरों से देखा करते थे
 और पापा मंद मंद मुस्कुराया करते थे
पिता  कुछ यादें बचपन की....
 जब मैं छोटी थी
 वे जब भी कुछ लाते थे
 चाहे वह चॉकलेट हो या मिठाई या कुछ और
 चुपके से मुझे बुलाते थे
  और सबको देने से पहले ही  एक मुझे थमा देते थे 
 कहते थे इसे छुपा देना और अकेले में खाना
 फिर बाकी बचा सब में बांट देते थे 
जिसमें मेरा हिस्सा भी होता था
 यूं तो वो  सच्चे और नेक दिल है
 पर मेरी खुशी के लिए
 इतनी गुस्ताखी कर लेते थे
 और अपना हिस्सा भी मुझे ही दे देते थे
 इससे मुझे इतनी खुशी मिलती थी कि 
मुझसे छुपाए नहीं छुपाई जाती थी
 और अंत में जब सब अपने हिस्से का खा चुके होते थे
 मैं अपनी छुपाई हुई चीज सब में  बांट कर खाती थी
 सबके मन में एक ही सवाल होता था
  सब तो खत्म हो गया था फिर यह कहां से आया
 सब पापा की और  सवाल भरी नजरों से देखा करते थे
 और पापा मंद मंद मुस्कुराया करते थे