नाम लब पे यूँ उसका जारी है ज़िन्दगी साथ में गुज़ारी है वक़्त बे-वक़्त जब सियासत हो ये सियासत की चाटुकारी है धर्म ईमान बेच खाए सब ये सियासत की ही ख़ुमारी है कल तुम्हारी है आज ये हमारी ज़िन्दगी की ये सब पिटारी है याद आते हो बेहिसाब क्यों तुम ये हमें कौन सी बिमारी है ✍️आकिब जावेद नाम लब पे यूँ उसका जारी है ज़िन्दगी साथ में गुज़ारी है वक़्त बे-वक़्त जब सियासत हो ये सियासत की चाटुकारी है धर्म ईमान बेच खाए सब ये सियासत की ही ख़ुमारी है