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इधर आओ की मैं तुम्हें कुछ समझाना चाहता हूँ,राज ए

इधर आओ की मैं तुम्हें कुछ समझाना 
चाहता हूँ,राज ए ज़िंदगी जीते है कैसे 
तुमको,बताना चाहता हूँ, की पाँव नहीं,
होते है अरमानो के, फिर भी चले आते 
है मन में,हो उठता है, बेचैन हर कोई
 पूरा करने,उन सपनों को, नींद उड़ 
जाती है रातों की,रिश्तों में भी आ जाती 
 दूरी, कोई ना समझे लाचारी,ना समझे 
कोई मजबूरी,ऐसी बिपदा आती है,जब 
आरमानो से लगन लग जाती है  ,उसूल
 रखना ये ज़िंदगी का ,लालच ना ज्यादा
 का रखना,उम्मीद बस अपने से रखना,
नीयत को काबूमें रखना, जीवन का हर 
सुख दुःख सहना,मिल जायेगा जब 
अनुभव तुमको, वो दौलत लाखों की 
होगी, कदर करेगा हर कोई तुम्हारा, 
मौत भी क्या बिगाड़ेगा  तुम्हारा, चले
 जाओगे,तुम गर जग से ,हर दिलों में 
तुम बस जाओगे याद करेंगे तुम्हें जग 
वाले,मरकर भी तुम अमर हो जाओगे
इधर आओ की........

©पथिक..
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