निकले थे घर से कोसों दूर कि परिवार को संभाल सके, दो वक़्त की रोटी खिलाकर उन्हें खुशहाल बना सकें, इन अमीरों की अमीरी ने ना जाने कौन सा प्रण लिया, महामारी फ़ैलाकर हमारा रोटी छीन लिया, हमें महामारी से तो नहीं लेक़िन, भूखमरी और गऱीबी जरूर मार देगी.... आज दहसत हैं चारों तरफ़ दिल बहुत उदास हैं, आँखों में आँसू हैं लेक़िन सुनने वाला यहाँ नहीं कोई ख़ास हैं.... निकल पड़े हैं अपनों के पास, अपने बहुत याद आ रहे हैं.... राहें बहुत लंबी हैं ज़िन्दगी से कुछ नहीं अब आस हैं, इमकान दिख नहीं रहा, इस महामारी के महशर में.... ज़िन्दगी का भरोसा ही नहीं, अब बस अपनों से मिलने की आस हैं.... पेट बहुत भूखा हैं गला भी रुंधा हैं.... पानी भी पास नहीं बस पहुँचना अपनों के पास हैं, अगर मर भी गए तो कंधे के लिए कोई नहीं यहाँ आसपास हैं... राहें बहुत लंबी हैं, ज़िन्दगी से अब कुछ नहीं आस हैं।।।। #गऱीबी#महामारी#भूखमरी