जैसा चाहा वैसा कोई मंज़र न मिला। मैं उम्र भर सफ़र में रहा घर न मिला। मैं ज़ख़्म सीने पर खाने को तैयार हूं। मगर चाहत भरा कोई खंज़र न मिला। रंज-ओ-ग़म, बेज़ार-ओ-बे'नूर हाय तौबा। दिलों के जहां में एक भी दिलबर न मिला ये तेरी गली ये मेरी गली उफ्फ ये तेरी-मेरी। इश्क़ से हरा भरा एक भी सज़र न मिला। शहर दर शहर बस गर्द और ख़ाक ही मिला। खुशियों भरा कहीं कोई भी शहर न मिला। हसीं और भी है दुनियां में मैं जानता हूं जय। मगर हमसफ़र मुझे कोई आपसे बेहतर न मिला। मृत्युंजय विश्वकर्मा ©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri" ग़ज़ल - सफ़र #bestgazals #BestSher #bestnojoto #mjaivishwa