हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिए! ज़िंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिए!! एक ही ठाँव पे ठहरेंगे तो थक जाएँगे! धीरे धीरे ही सही राह पे चलते रहिए!! आपको ऊँचे जो उठना है तो आंसू की तरह दिल से आँखों की तरफ हँस के उछलते रहिये शाम को गिरता है तो सुबह संभल जाता है आप सूरज की तरह गिर के संभलते रहिये डॉ कुँवर बेचैन साहब #रहिए