|| श्री हरि: ||
80 - तारक दर्शन
'मैया। यह कौनसा तारा है?' इस गर्मी की ऋतु में श्यामसुंदर बड़े भाई के साथ एक ही शय्या पर खुले आकाश के नीचे सो रहा है। चंद्रमा का उदय तो अभी दो घडी पीछे होगा। निर्मल नील गगन खिले तारकों से भर गया है। गोचारण से सायंकाल लौटे राम-श्याम को मैया ने स्नान कराया वस्त्र बदलवाये, भोजन कराया। खा-पीकर अब ये दोनों लेट गये हैं शय्या पर।
मैया पास आ बैठी है। कभी कन्हाई और कभी दाऊ मैया से किसी बड़े तारे का नाम पूछ बैठते हैं। छोटे तारों में इन्हें अभिरुचि नहीं और हो भी तो इतने ढेरों तारों का नाम मैया जानती कहां है।
निर्मल दिशाएं, शीतल मन्द पवन चल रहा है। भूमि खूब सींची गयी है और अब भी पूरी सूखी नहीं है। उज्जवल कोमल दूध के फेन जैसे आस्तरण के ऊपर राम-श्याम लेटे हैं। दो क्षण किसी तारे को देख-दिखाकर या तो वे स्वयं लेट जाते हैं या मैया आग्रहपूर्वक लिटा देती है।
मैया शय्या से नीचे बैठी है सटकर। उसके इन चंचल पुत्रों ने शय्या का आस्तरण सिंकोड़ दिया है स्थान-स्थान पर। बार-बार यह आस्तरण ठीक कर दिया करती है एक हाथ से। #Books