वो लफ्ज़ लफ्ज़ में मेरे बसता है जिसने कभी पढ़ा ही नहीं मुझे...! वो साँस-साँस सा मुझमें ही धड़कता रहता है, जिसने शामिल भी न किया ज़िंदगी में कभी।। पल, दिन, महीने, साल और तारीख बढ़ते रहे, यूँ तन्हाइयों पर जैसे कितने ही कर्ज़ चढ़ते रहे, वो हँसी- हँसी सा मुझमें ही महकता रहता है, जिसने शामिल भी न किया ज़िंदगी में कभी।।