बाज़ार में घूमते घूमते जब मेरी नज़र उस खिलौने पर पड़ी, मुझे मेरी बेटी की याद हो आई, कि कैसे सुबह उसने कहा था ,"पापा मुझे खिलौना चाहिए मेरे लिए वह गुड्डा गुड़िया लाओगे ना! जो बाजार में मिलता है" मैं कुछ नहीं कह पाया था; मुझे बस उसकी खामोश ;उसकी मासूमियत को ;उसके प्यार से बोलने वाली अंदाज़ को देख रहा था।सुन रहा था, क्योंकि मैं बहुत गरीब हूं। जो की इतने पैसे नहीं हैं; जो महंगे- महंगे खिलौने अपनी बिटिया रानी के लिए ला सकूं । मैं आज अपने ऊपर अफसोस जताता हूं ।अपनी किस्मत को कोसता हूं , कि ऐसी हालत क्यों है? क्यों मेरी हालत आज भी मेरी हालत बद से भी बदतर है। शाम होने को थी। मैं उसी बाजार से गुजर रहा था। उसी बाजार से जा रहा था की मेरी नजर फिर से उसी गुड्डे पर पड़ी जो पूरे ₹30 का था, और मैं उसे लेने के लिए गया आखिरकार मेरी गुड़िया रानी ने मुझे गुड़िया लाने को जो कहा था। आज मेरी कमाई ₹50 की हुई थी। मेरी साइकिल की घंटी जैसे सुनाई दी उसे वह चाहे कोठी, वो खिलखिला उठी, मानो वह उसी का इंतजार कर रही हो !और जैसे मैं उसके पास गया साइकिल से उतरा नहीं । कि वह मेरा झोला लेकर चल दी क्योंकि उसकी नजर पड़ गई थी ना इसलिए। उसने जैसे देखा अपने प्यारे से गुड्डा और गुड़िया को खिलखिला कर हंसते दी,प्रसन्न हो गई। और प्रेम से मुझे गले लगा लिया उस समय लगा जैसे मेरे मेरे से ज्यादा सौभाग्यशाली पिता कोई नहीं होगा। बस इतनी सी थी यह कहानी! ..लेखक सोनू #Vo_Khilona