जलती रही दीवार, साए को ख़बर नहीं, है मर गया इंसान, इन्सां को ख़बर नहीं। रंजिशें बे-ख़बरी के मेआ'र का पैमाना, सर-ए-हश्र मज़हब का है असर नहीं। हाँ, तू फूँक ख़ाक कर दे ये जहान सारा, भूल गया हासिल तुझे भी हैं पर नहीं। ये दीवारों पे लगी सफेदी स्याह सी है, अंधेरे के उजालों की होती सहर नहीं। ये नफ़रत, ये ज़हर, ये धुआँ, आदत है, 'शुभी' इबादत से होता अब गुज़र नहीं। मेआ'र- yardstick सर-ए-हश्र- doomsday #yqbaba #dimri #riseabovereligion #gazal #ग़ज़ल