कभी-कभी हम सोचते है ,कभी-कभी हम खुद को खोजते है... टकराते है दीवारों से माथा पटकतें है , कूरेदते हैं बिखरे हुए ज्जबीतों को तो... कभी बन्द हुई किताबो को खोलते हैं , पलटते हैं पन्नों को तो दर्द के सिवा कुछ नहीमिलता... कहीं देखते है खुद को घुट-घुट कर जीते हुए...पल-पल हर पल खुद को , खुद के हाथों खत्म करते हुए... मिलते हैं बीती हुई यादों से ,उन खोखले हो चुके इरादों से ,उन बचकाने वादों से... आँसुओं का इक गहरा समन्दर है यहाँ, कभी उस दरवाजे,को खोलतें हैं, झांकते हैं अन्दरतो पता चलता है कि कैसे एक... युग बीत गया लेकिन, अपनाअसर हम पर छोड गया... टूटी हुई उम्मीदों को देखा!.. झूठी शानों को देखा!!.. कि कैसे हम ने खुद को तोड लिया...पंख कटवाए, लेकिन.. सब से नाता तोड लिया , छोड आए दिल को, उस बन्द किताब में, हर मंजर से मुख मोड लिया... जब सुरखरू हुए हम खुद से,तो हर दर्द से... नाता तोड लिया,आजाद हैं , हम अब उस घुटन से ,जिस दिन का उसको छोड दिया। कभी-कभी हम सोचते है ,कभी-कभी हम खुद को खोजते है... टकराते है दीवारों से माथा पटकतें है , कूरेदते हैं बिखरे हुए ज्जबीतों को तो... कभी बन्द हुई किताबो को खोलते हैं , पलटते हैं पन्नों को तो दर्द के सिवा कुछ नहीमिलता... कहीं देखते है खुद को घुट-घुट कर जीते हुए...पल-पल हर पल खुद को ,