शाम का आसमान भी बड़ा संजीदा सा लगता हैं, खामोशियाँ ओढे हुए, रंगीनियत की जबान सा लगता हैं, वैसे तो अंधेरे की आहट पंछियों की चिल्लाहट में ही सुन लेता हूं, पर वो आसमाँ में उड़ते शरीर, मानो या न मानो...मुजे तो जादू सा लगता हैं। बडी फुर्ति से लौट रहे थे वो घर, ये तो कुछ इंसानियत सा लगता हैं। - मोहित संजीदा सा आसमान....