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तू किसी रेल सी गुज़रती है मैं पुल सा थरथराता हूं:


तू किसी रेल सी गुज़रती है मैं पुल सा थरथराता हूं: दुष्यंत कुमार


मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूं
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूं 

एक जंगल है तेरी आंखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूं 

तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूं 

हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूं 

एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूं 

मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूं 

कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूं सच बताता हूं

©Raah-e-fakira
  It's a beautiful poetry written by Dushyant kumar.#SunSet #raahefakira#sadpoetry#jaunelia#tehzeebhafi#lehaaz#kafiazmi

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