"बलात्कारी आँखे" (अनुशीर्षक पढ़े) "बलात्कारी आँखे" आज घिन्न आती है इन आँखों पर मुझे, ये आँखे बलात्कारी हो चुकी है, मिली थी ये आंखे दुनिया देखने समझने को, आज ये आँखे भ्रष्ट हो चुकी है, ताकती है घूरती है ये आँखे अब, घर-बहार राह चलते बेईमान हो गई है,