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।।श्री हरिः।। 38 - तुलसी-पूजन मैया तुलसी-पूजन कर

।।श्री हरिः।।
38 - तुलसी-पूजन

मैया तुलसी-पूजन कर रही है। गौर श्रीअंग, रंत्न-खचित नील कौशेेय वस्त्र कटि में कौशेय रज्जु से कसा है। चरणों में रत्ननूपुर हैं। कटि में रत्न जटित स्वर्णकाञ्ची है। करों में चूड़ियाँ हैं, कंकण हैं। रत्न जटित अंगूठियाँ हैं। भुजाओं में केयूर हैं। कंठ में सौभाग्य-सूत्र, मुक्तामाल, रत्नहार है और है नील कञ्चुकी रत्नखचित्त लाल कौशेय ओढनी। मोतियों से सज्जित माँग, मल्लिका-मालय-मंडित वेणी। आकर्ण-चुम्बित कज्जल-रञ्जित लोचन, कर्णों में रत्न-कुण्डल, भालपर सिन्दूर-बिन्दु, मैया ब्रजेश्वरी सौन्दर्य, सौशील, सोभग्य की मूर्तिमती अधिदेवता अपने मेंहदी रंगे करों से तुलसी-पूजन कर रही हैं। सुकुमार अलक्त्तकारुण श्रीचरण इसके स्थिर हैं भूमिपर।

कार्तिक मास की धन्य सन्धया-प्रांगण के मध्य निर्मित भव्य तुल्सी-स्तम्भ के ऊपर हरित-श्याम तुलसी-वीरुध मन्द पवन से किंचित हिल रहा है जैसे मैया की अर्चा के आनन्द से देवी वृंदा पुलकित सिहर-सिहर उठ रही हों।

जल देकर चंदन-कुंकुम अर्पित करके मैया ने पूजन कर लिया है और प्रदीप प्रज्वलित करके इस प्रकार रख कि उसका किंचित भी ताप तुलसी के किसी पत्र तक न पहुँचे। धूमपात्र से सुरक्षित धूम्र-कुण्डलियाँ उठ रही हैं।
anilsiwach0057

Anil Siwach

New Creator

।।श्री हरिः।। 38 - तुलसी-पूजन मैया तुलसी-पूजन कर रही है। गौर श्रीअंग, रंत्न-खचित नील कौशेेय वस्त्र कटि में कौशेय रज्जु से कसा है। चरणों में रत्ननूपुर हैं। कटि में रत्न जटित स्वर्णकाञ्ची है। करों में चूड़ियाँ हैं, कंकण हैं। रत्न जटित अंगूठियाँ हैं। भुजाओं में केयूर हैं। कंठ में सौभाग्य-सूत्र, मुक्तामाल, रत्नहार है और है नील कञ्चुकी रत्नखचित्त लाल कौशेय ओढनी। मोतियों से सज्जित माँग, मल्लिका-मालय-मंडित वेणी। आकर्ण-चुम्बित कज्जल-रञ्जित लोचन, कर्णों में रत्न-कुण्डल, भालपर सिन्दूर-बिन्दु, मैया ब्रजेश्वरी सौन्दर्य, सौशील, सोभग्य की मूर्तिमती अधिदेवता अपने मेंहदी रंगे करों से तुलसी-पूजन कर रही हैं। सुकुमार अलक्त्तकारुण श्रीचरण इसके स्थिर हैं भूमिपर। कार्तिक मास की धन्य सन्धया-प्रांगण के मध्य निर्मित भव्य तुल्सी-स्तम्भ के ऊपर हरित-श्याम तुलसी-वीरुध मन्द पवन से किंचित हिल रहा है जैसे मैया की अर्चा के आनन्द से देवी वृंदा पुलकित सिहर-सिहर उठ रही हों। जल देकर चंदन-कुंकुम अर्पित करके मैया ने पूजन कर लिया है और प्रदीप प्रज्वलित करके इस प्रकार रख कि उसका किंचित भी ताप तुलसी के किसी पत्र तक न पहुँचे। धूमपात्र से सुरक्षित धूम्र-कुण्डलियाँ उठ रही हैं।

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