खुला है आसमाँ खुली है ज़मी क़ैद है मानव, भरके आँखों में नमी. मन की है मेहरबानियाँ हिम्मत वह हारती नहीं, स्थिति कुछ बदली-बदली सी है लग रही, जान अब लगती है मौत से भी सस्ती- थोड़ा और सहे हम दर्द-ओ-ग़म-आशा है ख़त्म होगा महामारी जल्द ही! 📌नीचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को रचना का सार..📖 की प्रतियोगिता :- 178 में स्वागत करता है..🙏🙏 💫आप सभी 4-6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।