#OpenPoetry फैज़ ओ फराज़ दाग़ के अशआर क्या कहुँ बस इतना कहुँ तू मेरा गुलफाम रहेगा आबरू ए इश्क़ बचाने के लिए आजा वरना हमारे इश्क़ पे इलज़ाम रहेगा आरज़ू ए जाना की खत्म जुस्तजू हुई क्या मेरे ही ख्वाबों का कत्लेआम रहेगा लाख वफा करले वो मानेंगे ना कभी बाज़ार ए इश्क़ मे तू बदनाम रहेगा मीर ओ गालीब के हैं दिवान बड़े खास अदना ही सही अपना शेर आम रहेगा मैकश कह दो या तुम रिंद कहो मुझे अब येही काम अपना सुब्ह शाम रहेगा तारीख के पन्नों पे सियाही ना पोतना हालांकि मेरे हाथों मे अब जाम रहेगा आने वाली नस्लें तुझे जानेंगी आशिक़ दौर ए मुस्तकबिल मे तेरा नाम रहेगा Ghazal, Tu Mera gulfaam