क्या चाहता हूं अपने जीवन से ये अभी तक द्वंद है? खुशियां,सफलता या समेट लूं वर्तमान को जिसके लम्हे बस चंद हैं! क्या सभी मनुष्य घिरा है इसी उपापोह में या बस मेरी ही बुद्धि मंद है? अनगिनत विचार उठते हैं मष्तिष्क में ये शैतान है या कोई संत है? क्यों संतुष्ट नहीं हु जीवन से क्या मैं लालची हूँ? या फिर भाग्य में है कुछ और लिखा जिसके प्रति मैं आलसी हूँ! जीवन नें यहां रुकना भी नही है, आगे बढ़ने के लिए कुछ करना भी नही है।। मेहनत तो हो रही है परंतु पता नही किस ओर क्या सदैव रात रहेगी या होगी कभी भोर? कभी सोचता हूं भीड़ में ही रहूं, कभी लगता है अकेले आगे बढ़हुँ जीवन की उलझनें मस्तिष्क की तंत्रिकाओं से भी ज़्यादा हैं। पर सुलझा लूंगा इसे ये मेरा स्वयं से वादा है।। #NojotoQuote उलझन #उलझन #life #poem #nojoto