एक कोशिश थी ज़माने को पढ़ने की इंसा को जानने की, नादान मैं बदलने उसको चला था हृदय को उसके ढालने चला था. अब ख़ुद को पहचानने का हुनर सीखना है पढ़ सकूँ ख़ुद को ही ये सीखना है, बदल सकूँ किसी हृदय को पहले ख़ुद को बदलना को. ©avinashjha पहल