येषां न विद्या न तपो न दानं न चापि शीलं न गुणो न धर्म:। ते मृत्युलोके भुवि भारभूता मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति ।। जिनमें न विद्या है, न तप है, न दान है, न शील है, न गुण है और न धर्म ही है, वे इस मनुष्य लोक में पृथ्वी के भार बने हुए मनुष्यरूप में पशु ही फिर रहे हैं। चाणक्य नीति १०/७ #चाणक्यनीति जरा विचार करें।