किताबें वरदान हैं, ये मानता हूँ मैं। फिर किसी ने मुझे टोका, कहा, किताबें भगवान हैं। मैं थम गया। किताबें इंसानों को नाप चुकी। किताबें सब कुछ भांप चुकी। मैंने हामी भरी, किताबों की पूजा होनी चाहिए! नहीं। उसने मेरे गले पर चाकू लगाया, सिर्फ मेरी किताब। इसलिए कि वो ज्यादा मोटी है? तेरी चमड़ी मोटी है! उसने मुझे दो टुकड़े किया और मजहबी नारा लगाता चला गया। मैं सोच रहा हूँ कि किताब में कुछ व्याकरणीय, कुछ शाब्दिक, कुछ सैद्धांतिक अशुद्धियां अक्सर मिलती हैं। क्योंकि किताबों की स्याही मिटती नहीं, प्रकाशक नए संस्करण लाते हैं। कई पुस्तकें जिल्द में पूरी नहीं पड़ती, लेखक अगली कहानी को अगली जिल्द में पिरो डालते हैं। दुनिया की कोई भी किताब, मैंने समझा है, अकेली नहीं होती, उसके पहले अनगिनत जिल्दों का इतिहास और बाद नए जिल्दों के स्वरूप की पहेली होती है। पूजनीय पुस्तकें