दीवार की कील पे टंगा था ख़्याल छोड़ आया, मैं माँ के हाथों में खाने की थाल, छोड़ आया. ज़माने भर में सबके जवाब बना फिरता हूँ मैं, जाने कितने चेहरे पर मैं सवाल, छोड़ आया. तुम जाओंगे वसंत तो सब सुना हो जाएगा, मै तो पतझड़ और वो सुनी डाल, छोड़ आया हर बार धंधे में इज़ाफा हो ज़रूरी तो नहीं, जाने कितनों को करके कंगाल, छोड़ आया. काश एक-आद फूल बगीचें से ले आता मैं, पौधों की काटें पेड़ों की छाल, छोड़ आया. और मुद्दतों से देखा नही है मैंने ख़ुद को, किस आईने मे चेहरे का जमाल, छोड़ आया. Tribute to My Favourite and Legend Poet Munnawar Rana Sahab 🙏 Inspired by Muhazir Nama Book (Writer - Munnawar Rana Sahab)