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"बिहार" बिहार तुम प्रखर बनो, गढ़ते रहो बढ़ते रह

 "बिहार" 
 बिहार तुम प्रखर बनो, 
गढ़ते रहो बढ़ते रहो,'
 तुम अचल नहीं चंचल हो,
 तुम ज्ञान का प्रांगण बनो। 
      तुम बुद्ध ज्ञान की भूमि हो, 
      विस्तार मौर्य साम्राज्य का,
      नालंदा सा शिक्षाधार हो, 
      तुम चाणक्य सा नीतिकर हो। 
आधुनिकता में संस्कार हो, 
तुम बिस्मिल्लाह सा धुनकार हो, 
सत्याग्रह की शुरुआत हो, 
तुम अशोक सा सम्राट हो ।
      सुन्य का मान हो, 
      कर्ण सा दान हो, 
      कुंवर से वीर हो, 
      तुम हमारी शान हो । 
बिहार एक विरासत हो, 
दिनकर की कविता हो, 
विद्यापति का गान हो, 
मिथिला की शान हो। 
      तुम सनातन का विश्वास हो,
      तुम ईश का निवास हो,
      तुम अनेकता में एकता हो, 
      तुम धन्य और महान हो।'

©Dt Sapna Nova
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