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भूल राक्षस रूप , हो चली सुपर्णखा मोहित मानव आम पर,

भूल राक्षस रूप ,
हो चली सुपर्णखा मोहित मानव आम पर,

लालसा जगी उसकी पुरुषोत्तम राजा राम पर।

हो तुम परम् तेजस्वी सुंदर पुरुष इस भूलोक में,

मैं अभिमानी सर्वसुन्दरी इस त्रिलोक में।

ढूंढ आयी इस जगत में कोई सजीला, वीर सा,

हो जिसमे दिव्यता और जैसे धार तीर सा। भूल #राक्षस रूप, हो चली #सुपर्णखा मोहित मानव आम पर,

#लालसा जगी उसकी पुरुषोत्तम #राजा #राम पर।

हो तुम परम् तेजस्वी #सुंदर #पुरुष इस भूलोक में,

मैं अभिमानी #सर्वसुन्दरी इस त्रिलोक में।
भूल राक्षस रूप ,
हो चली सुपर्णखा मोहित मानव आम पर,

लालसा जगी उसकी पुरुषोत्तम राजा राम पर।

हो तुम परम् तेजस्वी सुंदर पुरुष इस भूलोक में,

मैं अभिमानी सर्वसुन्दरी इस त्रिलोक में।

ढूंढ आयी इस जगत में कोई सजीला, वीर सा,

हो जिसमे दिव्यता और जैसे धार तीर सा। भूल #राक्षस रूप, हो चली #सुपर्णखा मोहित मानव आम पर,

#लालसा जगी उसकी पुरुषोत्तम #राजा #राम पर।

हो तुम परम् तेजस्वी #सुंदर #पुरुष इस भूलोक में,

मैं अभिमानी #सर्वसुन्दरी इस त्रिलोक में।
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