होलिका दहन की पौराणिक कथा होलिका का ये त्योहार बहुत पुराने समय से मनाया जा रहा है। जैमिनी सूत्र में इसका आरम्भिक शब्दरूप 'होलाका' बताया गया है। वहीं हेमाद्रि, कालविवेक के पृष्ठ 106 पर होलिका को 'हुताशनी' कहा गया है। इसके अलावा भारत देश की संस्कृति में इस दिन को राजा हिरण्यकश्यप और होलिका पर भक्त प्रहलाद की जीत के रूप में मनाया जाता है। दरअसल होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी और उसे आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था, जबकि हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, जो कि हिरण्यकश्यप को बिल्कुल भी पसंद नहीं था। इसलिए एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे की विष्णु भक्ति से परेशान होकर उसे होलिका के साथ आग में जलने के लिये बिठा दिया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका आग में जल गई। तभी से होलिका दहन का ये त्योहार मनाया जाने लगा। इस दिन होलिका दहन के समय जलती हुई आग में से भक्त प्रहलाद के प्रतीक स्वरूप मिट्टी में दबाये गये डंडे को निकाला जाता है, जबकि डंडे के आस-पास लगी हुई लकड़ियों को जलने दिया जाता है। #NojotoQuote