1.रहत अवर कछ अवर कमावत मन नहीं प्रीत मुखों गंड लावत।।2. मुख ते पड़ता टीका सहित हिरदै राम नहीं पूर्ण रहत।। अर्थ:- मन की रहत कुछ और थी पर मन कमा कोई और ही रहत रहा है।। मन में प्रभु की प्रीत नहीं उपजी (क्योंकि प्रभु को देखा नहीं नेत्रों से), मुख से सिर्फ राम-राम यां वाहेगुरू-वाहेगुरू, अल्लाह-अल्लाह का उच्चारण करके परमात्मा से जुड़ने का प्रयास कर रहा है जीव मन।। 2. मुख से विचार विचार कर उल्लथे पड़ता है पाठ के पर मन में पूरा राम यानी प्रकाश नहीं बसा यानी नाम ध्यान के मार्ग पर कैसे चलना है व मन प्रकाश कैसे करना है! यह पूर्ण रहत अभी तक सच्चे सन्त जनो से पूछ कर नहीं रखी।। ©Biikrmjet Sing #रहत