मशगूल हैं वो सियासत में इधर मासूम जिंदगीयां हैं कि उजड़ रहीं, तड़प तड़प कर चली गईं कितनी जानें मांओं की आंख रो रो कर पथरा गईं। दिल रो रहा है खून के आंसू रात दिन, आज फिर उसके घर से उसकी इक परी चली गई। सायद वो गरीब है इसी लिए तो, मृत देह को मासूम की कंधे से चिपका मां अस्पताल से खुद ही चली गई। मैंने देखा है दौरा साहब का बुखार पर, रकम तीमार के हिस्से की मजमें पर साहब के खर्च गई। मांऐ वो चीखती रही जो जोर जोर से रात भर, आज सुबह से उन्ही की है गोद खाली और आंखें पथरा गईं। मशगूल हैं वो सियासत में इधर मासूम जिंदगीयां हैं कि उजड़ रहीं, तड़प तड़प कर चली गईं कितनी जानें मांओं की आंख रो रो कर पथरा गईं।