आधी रात मेघा तले जब वो मुझसे बात करती गईं एक जंजीर थी सीने पे जो ख़ुद-ब-ख़ुद टूटती गईं क्या ही बोलूँ क्या नशा था उसकी हर एक बात में मानो जैसे हर खुशी मिल गईं मुझे बरसात में कितनी भी भागें जिंदगी मैं फिर वहीं मिल जाता हूँ बस इतनी है खामी मेरी मैं झूँठ नहीं कह पाता हूँ एक अरसे से ये इश्क़ है एकतरफ़ा मैं निभाता हूँ फिर कभी न बोलूँगा कितना तुझे मैं चाहता हूँ #इख़्लास